Tuesday, 17 May 2016

चमत्कारिक मंदिर

#छिन्नमस्तिका

माता दुर्गा सबसे शक्तिशाली देवी मानी जाती हैं। पुराणों के अनुसार उन्हें माँ पार्वती का रूप माना जाता है जो कि भगवान शिव की पत्नि हैं। माँ दुर्गा के विश्व और भारत में बहुत से मंदिर हैं जिसमें माता के अवतारों को पूजा जाता है। भारत वैसे बहुत वैभवशाली देश है यहां संस्कृति की बहुत्ता ही है जो सभी को परमात्मा की ओर जोड़ती है। इसी कड़ी में हम आज बात कर रहे हैं एक सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ के बारे में, जहां मां के गले से बहती है रक्तधारा।

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का मंदिर है।रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के गले से दोनो ओर से हमेशा रक्तधारा बहती रहती है। जिसके कारण यह अधिक फेमस भी है। इस मंदिर को असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। रजरप्पा का यह सिद्धपीठ के अलावा यहां पर अनेक मंदिर जैसे महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर। दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर बना हुआ है। दामोदर और भैरवी नदियों पर अलग-अलग दो गर्म जल कुंड हैं। माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से चर्म रोग जैसे कई गंभीर बीमारियां सही हो जाती है।

#छिन्नमस्तिका

#छिन्न_मस्तिका_माता_की_उत्पत्ति_की_कहानी

एक बार भगवती भवानी अपनी दो सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भवानी के साथ-साथ दोनों सहलियों को तेज भूख लगी। जिसके कारण उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा। लेकिन वह बार-बार भूख लगने की हट करने लगी। बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह करते हुआ कहा – मां तो अपने बच्चों को तुंरत भोजन प्रदान करती है।

ऐसा सुनकर भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर धड़ से अलग कर दिया। कटा हुआ सिर उनके बाए हाथ में जा गिरा और तीन रक्त धराएं बहने लगी। वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगी। और तीसरी धारा जो ऊपर की ओर बह रही थी, उसे स्वयं माता पान करने लगी। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।

असम में मां कामाख्या और बंगाल में मां तारा के बाद झारखंड का मां छिन्नमस्तिका मंदिर तांत्रिकों का मुख्य स्थान है। यहां देश-विदेश के कई साधक अपनी साधना करने नवरात्रि और प्रत्येक माह की अमावस्या की रात में आते हैं। तंत्र साधना द्वारा मां छिन्नमस्तिका की कृपा प्राप्त करते हैं।

मां छिन्नमस्तिका का सिर कटा हुआ है। इनके गले के दोनो ओर से बहती हुई रक्तधारा को दो महाविधाएं ग्रहण करती हुई दिखाई दे रही है। मां के पैर के नीचे कमलदल पर लेटे हुए रामदेव और रति है। यहां पर बकरे की बलि दी जाती है।

बलि के बाद सिर पुजारी ले जाता है और बचा हुआ भाग देने वाले व्यक्ति को दे दिया जाता है। लेकिन सबसे आश्चर्य की बात ये है कि जिस जगह बकरे की बलि दी जाती है, वहां पर इतना खून पड़े रहने के बाद भी एक भी मक्खी नहीं लगती है।

चम्तकारों से ओतप्रोत यह मंदिर सभी के लिए एक ज्ञिगासा का केन्द्र रहता है। भक्त अपनी मनोकामना मांगने यहां आते- जाते रहते हैं।